फिर एक घटना घटी…………..फिर एक लड़की को सरेआम अपमानित किया गया………..देश फिर शर्मसार हुआ……..फिर तथाकथित भारतीय संस्कृति कलंकित हुयी………….। टीवी चैनलों को बहस का मुद्दा मिल गया……….काफी गम और गुस्सा जाहिर किया गया………….
इस घटना पर गुस्सा आना बहुत ही स्वाभाविक है। एक 16 साल की लड़की को सरेआम एक भीड़ अपमानित कर रही है। पहले उसके सौ-दो सौ दर्शक बने फिर सारे देश ने इस तमाशे को देखा। एनडीटीवी में प्राइम टाइम में यह घटना ‘सबसे पहले’ एयर की। सारे पैनलिस्ट काफी आक्रोश में दिखे। घटना इतनी महत्वपूर्ण थी कि कार्यक्रम के बीच में आने वाले विज्ञापन ब्रेक (जो इन चैनलों के मुनाफे की जीवनरेखा होते हैं) को प्रोग्राम डायरेक्टर ने मना कर दिया और कार्यक्रम बिना ब्रेक के यथावत जारी रहा। अगले दिन भी टीवी चैनल इसी घटना पर बने रहे।
गौरतलब है कि असम के प्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई ने उस रिपोर्टर को इस पूरी घटना का जिम्मेदार बताया है जो इसे शूट कर रहा था। एक स्थानीय चैनल न्यूज लाइव का रिपोर्टर न केवल उस घटना का दर्शक था बल्कि उसने इस पूरी घटना को शूट करके उस लड़की का नाम पता सब चैनल पर एयर कर दिया। हालांकि बाद में चैनल ने इस ‘भूल’ के लिए माफी मांग ली। गोगोई के अनुसार वह पत्रकार इस पूरी घटना के ‘मुख्य दोषी’ का मित्र था।
हालांकि यह बहस काफी पुरानी है कि एक रिपोर्टर को ऐसी किसी घटना के समय क्या करना चाहिए। घटना को रोकने की कोशिश करनी चाहिए या फिर उसे रिकार्ड करके अपनी ‘पत्रकारीय ड्यूटी’ निभानी चाहिए।
खैर, बहस के मुद्दे बहुत सारे हैं। ‘इस दौर में नैतिकता की उम्मीद न करें’ की तर्ज पर हो सकता है कि किसी नए स्कूप को पाने के लिए यह पूरी घटना सुनियोजित हो। जिसमें शिकार एक लड़की को बनाया गया, जो बहुत ही आसान है। एक 16 साल की लड़की एक पब में क्या कर रही थी? (जैसा कि वे लड़के उस लड़की को प्रताडि़त करते समय चिल्ला चिल्ला कर कह भी रहे थे) सवाल यह भी हो सकता है कि इस पब संस्कृति को इस ‘महान’ देश में लाया कौन? सवाल बहुत सारे हो सकते हैं। सवालों के इन उत्तरों को तलाशने के क्रम में हम सभी दोषियों की कतार में खड़े हैं।
शुरू करते हैं महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा के बयान से (जिनके सेक्सी होने के आत्मगौरव से हम सभी परिचित हैं)। उनका कहना है कि भारतीय संस्कृति जो महिलाओं का सम्मान करती है, उसमें ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए।
जबकि सच यह है कि भारतीय संस्कृति तो महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने में माहिर रही है। याद करें द्रौपदी को नंगा करने की घटना, जहां राजा से लेकर दरबारी तक सभी उसका लुत्फ ले रहे थे। भारतीय समाज में ही आए दिन औरतों को नंगा करके सरेआम घुमाने की घटनाएं बहुत आम हैं।
इसी असम में , इसी गुवाहाटी में कुछ साल पहले एक आदिवासी महिला को नंगा करके घुमाया गया था और फिर एक बिजनेसमैन ने सरे आम उसकी पिटाई की थी। हाथ में डंडा लिए, लात से उस महिला को मारते हुए इस बिजनेसमैन की पूरी तस्वीरें यू ट्यूब पर अभी भी मौजूद है। इस महिला का दोष यह था कि वह अपनी जनजाति के लिए आरक्षण की मांग के साथ होने वाली एक रैली में हिस्सा ले रही थी। उस वक्त भी मुख्यमंत्री ने इस घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया था। उसकी रिपोर्ट आयी कि नहीं कोई नहीं जानता। इतने वर्ष बाद वह आदिवासी महिला अभी भी डरी सहमी है और उस बिजनेसमैन का बिजनेस फलफूल रहा है।
इस घटना के बाद भी मुख्यमंत्री ने घटना की जांच की घोषणा कर दी है। कुछ दिनों में यह सारा शोर नेपथ्य में चला जाएगा। रंगमंच का पर्दा फिर गिर जाएगा। हम फिर अचेतन रूप से एक नए ‘शो’ की प्रतीक्षा करने लगेंगे।
दरअसल भीड़ द्वारा सरेआम एक महिला का अपमान किया जाना गैंगरेप से भी ज्यादा भयंकर है। ये घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के एक आंकड़े के अनुसार सन 2011 में महिलाओं के साथ अपराध के कुल 2.25 लाख मामले दर्ज किये गए हैं। याद रहे ये वे घटनाएं हैं जिनकी रिपोर्ट की गयी है।
इन घटनाओं में बढ़ोत्तरी इस बात का द्योतक है कि हमारे समाज में सत्ता का जो ढांचा है (पितृसत्ता के रूप में) उसमें रत्ती भर बदलाव भी इसके पोषकों को सह्य नहीं है। उसकी अभिव्यक्ति इस रूप में हो रही है कि पुरुष महिलाओं के अपनी मर्जी से उठने-बैठने, कपड़े पहनने और अपने निर्णय खुद लेने यानी कुल मिला कर अपनी मौजूदगी की घोषणा करने को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही में बागपत में पंचायत द्वारा महिलाओं के बाजार जाने और मोबाइल फोन रखने पर प्रतिबन्ध लगाने का फरमान इसी का परिचायक है।
ऐसे में देश के गृहमंत्री से लेकर पुलिस, टीवी चैनल, और सभी इसका हल तलाश रहे हैं कि क्या किया जाए कि ऐसी घटनाएं न घटे। पर जब सवाल सत्ता दरकने का हो तो जवाब आसान नहीं होता। मसला सिर्फ मानसिकता बदलने का ही नहीं है। मानसिकता को आप घरों और स्कूलों में नैतिक शिक्षा देकर ही नहीं बदल सकते। कुछ ऐसा करना होगा कि बुनियाद ही बदल जाए…….। कैसे……..? यही यक्ष प्रश्न है।
कृति
Pingback: सवाल दर सवाल: जनसत्ता में ‘कृति मेरे मन की’
कुछ तो करना होगा
http://blogsinmedia.com/?p=20050