Monthly Archives: April 2014

करीब से……

ज़ोहरा सहगल की 102 साल की भरीपुरी जि़न्दगी की एक झलक मिली उनकी आत्मकथा ‘क़रीब से’ में। हालांकि एक शतक की पूरी जि़न्दगी 241 पन्नों की किताब में समेट पाना बेहद मुश्किल है, वह भी तब जब जीवन में इतना … Continue reading

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‘Eyewitness in Falluja’ by Jo Wilding

जर्नलिज्म को इतिहास का ‘पहला ड्राफ्ट’ कहा जाता है। आज से ठीक दस साल पहले अमरीका द्वारा ईराक पर हमले के समय जब अधिकांश पत्रकार अमरीकी सेना के साथ ‘Embed’ थे और अमरीका की ‘सफलता’ की खबरे दे रहे थे … Continue reading

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‘पूंजीवाद का प्रपंच’ – सिद्धार्थ वरदराजन

नरेंद्र मोदी आखिर किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, और भारतीय राजनीति में उनके उदय के क्या मायने हैं? 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों का बोझ अब भी उनके कंधों पर है। ऐसे में, सांप्रदायिक राजनीति के ऐतिहासिक उभार के तौर पर … Continue reading

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