‘शू लिझी’ [Xu Lizhi] उस वक्त महज 24 वर्ष के थे, जब उन्होने पिछले वर्ष 30 सितम्बर को अपनी बहुमंजिला मजदूर डारमेट्री से छलांग लगाकर अपना जीवन समाप्त कर लिया था। वे ‘फाॅक्सकान’ नामक इलेक्ट्रानिक सामान बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी में मजदूर थे। चीन में मजदूरों की मौत कोई खबर नही होती। दरअसल चीन की बहुप्रशंसित विकास दर चीन के मजदूरों की लाश पर ही खड़ी है। जितनी ज्यादा लाशें उतनी ज्यादा विकास दर। पिछले वर्ष ही वहां सिर्फ खनन उद्योग में ही 1049 मौतें हुई थी।
शू लिझी की मौत भी चीन की विकास दर की भेंट चढ़कर गुमनामी में खो जाती, लेकिन कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के हाथ उनकी डायरी लग गयी। डायरी में पन्ने दर पन्ने वहां के मजदूरों के जीवन के रोजमर्रा के संघर्ष, उनके सपने, उनकी आकांछाऐं और दुनिया बदलने की उनकी जिद दर्ज थी और वह भी कविता के रुप में। उन दोस्तों ने इन बेहतरीन कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद करके इण्टरनेट पर डाल दिया। और तब से दुनिया की कई भाषाओं में इन कविताओं का अनुवाद शुरु हो गया। दुनिया को पता चला कि 30 सितम्बर 2014 को एक मजदूर की ही नही बल्कि एक कवि की भी मौत हुई है। ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ के शब्दों में कहें तो-”तुम्हारी मृत्यु में/ प्रतिबिंबित है हम सबकी मृत्यु/ कवि कहीं अकेला मरता है!”
इसके बाद ही दुनिया को यह पता चला कि पिछले 2-3 वर्षो में फॅाक्सकान में काम करने वाले कुल 14 मजदूरों ने ठीक इसी तरह आत्महत्या की है। यह भी पता चला कि फाॅक्सकान में काम की स्थितियां व वेतन बेहद खराब हैं। जबकि पिछले वर्ष ही इस कंपनी का राजस्व 132 बिलियन डालर था। और सिर्फ चीन में ही इसके पास 12 लाख मजदूर और कर्मचारी हैं। कंपनी के मालिक ‘टेरी गाउ’ की अपने मजदूरों के प्रति सोच क्या है, यह उनके एक बयान से पता चलता है। जिसपर काफी विवाद भी हुआ था और उन्हे माफी भी मांगनी पड़ी थी। एक बोर्ड की मीटिंग में उन्होने कहा था कि 12 लाख मजदूर 12 लाख पशुओं के समान है और पशुओं को हैन्डिल करना हमेशा ही काफी सरदर्द वाला काम होता है। और यह सच है कि फाॅक्सकान के मजदूरों से कम्पनी का बर्ताव पशुओं जैसा ही होता है। ऐसी सोच का ही यह नतीजा है कि मजदूरोें की आत्महत्या रोकने के लिए कंपनी ने डारमेट्री के चारों तरफ नेट लगा दिया ताकि कोई ऊपर से कूदे तो जाल में उलझ जाये। मजदूरों के साथ यह क्रूर मजाक नही तो और क्या है। कुछ वर्ष पहले की बात है जब छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक स्पंज आयरन फैक्टरी में एक के बाद एक कई हादसे हुए जिसमें 4 मजदूरों की मौत हो गयी। तब ऐसे हादसों और मौतों को रोकने के लिए फैक्टरी को एक दिन के लिए बन्द करके वहां गायत्री मंत्र का जाप व हवन कराया गया। हम भी चीन से पीछे क्यों रहे।
इस कम्पनी का भारत से भी रिश्ता रहा है। पिछले वर्ष दिसम्बर में जब पूरा देश मोदी लहर पर सवार था तो इसने चेन्नई स्थित अपना प्लांट अचानक बन्द कर दिया। एक झटके में 1700 कर्मचारी सड़क पर आ गये। अप्रत्यक्ष रुप से तो करीब 85 हजार मजदूर बेरोजगार हो गये। जब हम सब नये साल का जश्न मना रहे थे तो ये मजदूर अपने विरोध प्रदर्शन के कारण पुलिस की लाठियां खा रहे थे।
फाॅक्सकान कम्पनी ने शू लिझी की मौत के बाद उनके परिवार वालों को धमकी देकर ऐसे समझौते पर दस्तखत करा लिया कि वे शू लिझी के बारे में मीडिया से बात नही करेंगे। यह बात तब सामने आयी जब शू लिझी पर एक डाक्यूमेन्ट्री बनाने वाले फिल्मकार ने उनसे सम्पर्क करना चाहा।
बहरहाल उनकी कविताओं का दुनिया भर के कई हिस्सों में पाठ हो रहा है और उनकी कविता की पुस्तक जल्द ही आने वाली है।
शू लिझी की कविताओं में वह चुभने वाला यथार्थ है जो मीडिया, अखबारों से ओझल है। दुनिया की सारी चमक दमक जिनके बल पर है वो अदृश्य हैं, जैसे उनका कोई अस्तित्व ही ना हो। लेकिन शू लिझी की कविताओं में वे मौजूद है अपनी पूरी ठसक और अपनी संघर्ष चेतना के साथ। इन कविताओं से गुजरते हुए अन्दर कुछ टूटता जाता है और शू लिझी से यह शिकायत जोर पकड़ती जाती है कि तुमने गलत किया। तुम्हे अपनी जान नही देनी चाहिए थी। कविता को इस तरह से अधूरा नही छोड़ना चाहिए था, संघर्ष को इस तरह अधूरा नही छोड़ना चाहिए था।
लेकिन टूटी कड़िया फिर फिर जुड़ जाती हैं और कविता हमेशा आगे बढ़ती जाती है क्योकि प्रतिरोध की परंपरा कभी आत्महत्या नही करती। शू लिझी की मौत के बाद उसके एक दोस्त ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक कविता में लिखा-
”मेरी जगह तुमने मौत का दामन थामा है,
तो तुम्हारी जगह अब मैं लिखूंगा।”
अपनी मौत के दिन ही उन्होने जो कविता लिखी थी वह यह है-
“On My Deathbed”
I want to take another look at the ocean, behold the vastness of tears from half a lifetime
I want to climb another mountain, try to call back the soul that I’ve lost
I want to touch the sky, feel that blueness so light
But I can’t do any of this, so I’m leaving this world
Everyone who’s heard of me
Shouldn’t be surprised at my leaving
Even less should you sigh or grieve
I was fine when I came, and fine when I left.
— Xu Lizhi, 30 September 2014
उनकी चुनी हुई कविताएं आप यहां से Xu Lizhi ki kavitaye डाउनलोड कर सकते हैं।