Author Archives: kriti shree

‘Nostalgia for the Light’

9/11 आज एक मुहावरा बन चुका है। 2001 के बाद की दुनिया और 2001 के बाद की अमरीकी विदेश नीति को इन दो जादुई अंकों से ‘डीकोड’ किया जा सकता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि दुनिया … Continue reading

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डाॅ. अम्बेडकर की 125वीं जयंती पर

1939 में डाॅ. अम्बेडकर ने ‘देश’ और अछूत जातियों के बीच के शत्रुवत अन्तरविरोधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘‘जब भी अछूत जातियों और देश के हितों के बीच किसी भी तरह का टकराव होगा तो जहां तक … Continue reading

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पेरिस कम्यून: स्वर्ग में हमला -क्रिस हरमन

इस साल महान ‘पेरिस कप्यून’ के 145 साल मनाया जा रहा है। मजदूरों का यह महान विद्रोह 1871 [18 March – 28 May 1871] में पेरिस में हुआ था। तात्कालिक पराजय के बावजूद इसने इतिहास की धारा ही पलट दी। … Continue reading

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भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू की शहादत पर डा अम्बेडकर — सुभाष गाताडे

(जनता, 13 अप्रैल 1931) भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू इन तीनों को अन्ततः फांसी पर लटका दिया गया। इन तीनों पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने सान्डर्स नामक अंग्रेजी अफसर और चमनसिंह नामक सिख पुलिस अधिकारी की लाहौर में हत्या … Continue reading

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‘Engels was Right: Early Human Kinship was Matrilineal’ by Chris Knight

In 2008, the Royal Anthropological Institute published a scholarly volume entitled Early Human Kinship.[1] It stemmed from a 2005 workshop held in Gregynog, Wales, as part of the prestigious British Academy Centenary Project ‘From Lucy to Language: The Archaeology of … Continue reading

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व्यक्ति का ‘राष्ट्रद्रोह’ बनाम राष्ट्र का ‘देशद्रोह’

अंग्रेजों के समय में जब ‘तिलक’ को राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया तो उन्होने कोर्ट में बयान देते हुए यह सवाल उठाया कि यदि व्यक्ति राष्ट्रद्रोह करे तो उसके लिए कानून (124 ए) है और सजा का प्रावधान … Continue reading

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‘रोहित वेमुला’ के मायने……..

आज से ठीक 80 साल पहले जयपुर के निकट चकवाड़ा नामक गांव में एक दलित परिवार ने अपने खाने में देशी घी का इस्तेमाल किया और भोजन करने के दौरान ही उसी गांव के सवर्णो ने उस दलित परिवार पर … Continue reading

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‘फ़ांस’: किसान की आत्म’हत्या’ की त्रासदी का आईना

पिछले साल जबसे संजीव के उपन्यास ‘फ़ांस’ की चर्चा सुनी, तब से ही वह ज़हन में अटकी हुई थी. इत्तेफ़ाक से साल की शुरुआत में ही जैसे ही वह मुझ तक पहुंची उसे दो बैठक में ही पढ़ लिया. पढ़ते … Continue reading

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‘ये साल भी यारों बीत गया’ —– गौहर रज़ा

ये साल भी यारों बीत गया कुछ खू़न बहा कुछ घर उजड़े कुछ कटरे जल कर ख़ाक हुए एक मस्जिद की ईंटों के तले हर मसला दब कर दफ्न हुआ जो ख़ाक उड़ी वह ज़ेहनो पर यूं छायी जैसे कुछ … Continue reading

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जीएसटी का जंजाल: किसी का बोझ, किसी के सिर —- देविंदर शर्मा

कल्पना कीजिए कि मेरा पड़ोसी अपने घर को नए सिरे से सजा-संवार रहा है. हर पुरानी चीज को हटाकर नए सिरे से नई तकनीक के साथ घर की साज-सज्जा का काम हो रहा है. मुझे भरोसा है कि नया घर … Continue reading

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