नागार्जुन ने ‘बाल ठाकरे’ पर यह कविता 1970 में लिखी थी। इस कविता को याद करने का इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है।
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
कैसे फासिस्टी प्रभुओं की —
गला रहा है दाल ठाकरे!
अबे संभल जा, वो आ पहुंचा बाल ठाकरे !
सबने हां की, कौन ना करे !
छिप जान, मत तू उधर ताक रे!
शिव-सेना की वर्दी डाटे जमा रहा लय-ताल ठाकरे!
सभी डर गए, बजा रहा है गाल ठाकरे !
गूंज रही सह्यद्रि घाटियां, मचा रहा भूचाल ठाकरे!
मन ही मन कहते राजा जी; जिये भला सौ साल ठाकरे!
चुप है कवि, डरता है शायद, खींच नहीं ले खाल ठाकरे !
कौन नहीं फंसता है, देखें, बिछा चुका है जाल ठाकरे !
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
बर्बरता की ढाल ठाकरे !
प्रजातंत्र के काल ठाकरे!
धन-पिशाच के इंगित पाकर ऊंचा करता भाल ठाकरे!
चला पूछने मुसोलिनी से अपने दिल का हाल ठाकरे !
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
—–नागार्जुन
(जनयुग, 7 जून 1970)