Coal Curse: A film on the political economy of coal in India

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मशहूर पत्रकार ‘परंजय गुहा ठकुरता’ की एक महत्वपूर्ण किताब GAS WARS:crony capitalism and the Ambanis अभी पिछले माह ही छपकर आयी है। इस पर मुकेश अंबानी ने 100 करोड़ का मानहानि का दावा ठोका है और इस किताब पर बैन की मांग की है।
इसी तरह पिछले वर्ष परंजय गुहा ठकुरता ने एक बेहतरीन डाकूमेन्ट्री Coal Curse: A film on the political economy of coal in India बनायी थी। इस फिल्म पर भी काफी विवाद हुआ था। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह फिल्म यूपीए के अब तक के सबसे बड़े घोटाले कोल स्कैम पर है। इसे परंजय गुहा ठकुरता और ग्रीन पीस ने मिलकर बनाया है। हालांकि फिल्म मुख्यतः कोल स्कैम पर है, लेकिन फिल्म के दूसरे हिस्से में यह मध्य प्रदेश के ‘सिंगरौली’ में स्थित पावर प्लांट को एक केस स्टडी के रुप में लेते हुए भारत में विकास के माडल पर ही सवाल खड़ा करती है।
2012 के अंत में जब सीएजी ने अपनी रिपोर्ट दी तो उसमें कहा गया कि कोल ब्लाक की नीलामी न करके उसे अपनी मर्जी से आवंटित करने के कारण सरकार को 1 लाख 86 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। यह राशि करीब 33 बिलियन अमेरिकी डालर के बराबर है। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इस राशि से क्या क्या हो सकता है।
डाकूमेन्ट्री में यह मजेदार तथ्य बताया गया है कि बहुत से कोल ब्लाक उन लोगो को दिये गये जिनका कोयले से जुड़ी परियोजना अर्थात पावर जनेरेशन या स्टील प्लांट आदि से कोई लेना देना नही था। कोई तम्बाकू बना रहा है तो कोई सीडी निर्माण के बिजनेस में है। ये लोग कोयले का करेंगे क्या? जाहिर है उन लोगों को कोयला बेंचेगे जिन्हे इसकी जरुरत है। और उस चीज से करोड़ो का मुनाफा कमायेंगे जिसे बनाने में न तो उनकी एक पैसे की पूँजी लगी है और न एक पैसे का श्रम।
डाकूमेन्ट्री में इस सवाल को सही तरीके से उठाया गया है कि प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए क्योकि ये संसाधन बहुत सीमित हैं। इसलिए ‘मार्केट प्राइस’ का नियम यहां लागू नही होता। मशहूर पर्यावरणविद् ‘अनुपम मिश्र’ इसे बहुत ही रोचक तरीके से रखते हैं- धरती हमारी मदर है, मदर डेरी नही कि जितना पैसा डालो उतना ले जाओ। यह एक पंक्ति प्राकृतिक संसाधनों के पूरे राजनीतिक अर्थशास्त्र को साफ कर देता है।
डाकूमेन्ट्री में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि जंगलो के बाहर भी बहुत से कोयले के भंडार है। इसे निकालने से पर्यावरण का उतना नुकसान नही होगा जितना जंगल के अंदर कोयले की खुदाई से होता है। लेकिन पूंजीपति और सरकार जंगल के अंदर खुदाई पर ज्यादा जोर दे रहे हैं, क्योकि बाहर खुदाई की लागत ज्यादा आती है। यानी चंद पैसे बचाने के लिए पर्यावरण की बलि चढ़ाई जा रही है। दूसरा कारण यह है कि जंगल में रहने वाली जातियां अभी हाल तक काफी कमजोर मानी जाती थी और यह माना जाता था कि उनके साथ मनमाना व्यवहार किया जा सकता है।
1973 में जब देश के कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया तो यह तर्क दिया गया कि इन खदानों में मजदूरों का बहुत शोषण हो रहा है। बड़े पैमाने पर दुर्घटनाएं हो रही है। लेकिन राष्ट्रीयकरण के इतने सालों बाद आज भी उपरोक्त दोनों चीजे बदस्तूर जारी है। लेकिन इस पहलू पर फिल्म में ज्यादा जोर नही दिया गया है। हां कुछ सशक्त दृश्यों के माध्यम से यह चीज सम्प्रेषित जरुर हो जाती है। फिल्म में इस पहलू पर यदि उचित जोर दिया जाता तो फिल्म और भी प्रभावकारी बन जाती।
फिल्म में ‘सिंगरौली’ को एक रुपक की तरह लेकर विस्थापन की समस्या के सभी पहलुओं को रखने की कोशिश की गयी है।
डाकूमेन्ट्री में ‘काला पत्थर’ जैसी कुछ फिल्मों के दृश्योें का रोचक इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा पुराने आर्काइव फुटेज का भी अच्छा इस्तेमाल किया गया है। डाकूमेन्ट्री की एक और खास बात है इसका म्यूजिक। पूरी फिल्म में लोक गीतों का बहुत अच्छा और प्रासंगिक इस्तेमाल हुआ है। कुछ गीत तो बहुत ही कर्णप्रिय है। ये गीत आपको संबधित विषय से भावनात्मक रुप से जोड़ देते हैं। ‘इंडियन ओसियन म्यूजिक बैंड’ के ‘झीनी’ नामक एलबम का भी इसमें इस्तेमाल किया गया है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि यह फिल्म हिन्दी में भी उपलब्ध है।
दरअसल अभी तक हमारे जेहन में डाकूमेन्ट्री को लेकर जो तस्वीर बनती थी वह दूरदर्शन द्वारा बनायी गयी डाकूमेन्ट्री होती थी जो बेहद नीरस किस्म की होती थी। लेकिन इधर विशेषकर 2000 के बाद जो डाकूमेन्ट्री बन रही हैं वे बेहद प्रयोगधर्मी हैं- न सिर्फ विषय के स्तर पर बल्कि तकनीक के स्तर पर भी। कहीं कहीं तो ‘फिक्शन’ और ‘नान फिक्शन’ की बाउन्ड्री भी धुंधली पड़ती जा रही है।
सिर्फ भारत में ही इस समय करीब 1000 डाकूमेन्ट्री का निर्माण हर साल हो रहा है। यानी सभी भाषाओं में बनने वाली कुल फिल्मों से भी ज्यादा।
बहरहाल आप यह फिल्म यहां देख सकते हैं।

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One Response to Coal Curse: A film on the political economy of coal in India

  1. sonesh says:

    Enjoyed reading this

    Thanks for sharing

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