Monthly Archives: February 2013

Koodankulam: Shoddy equipment develops leaks – by Sam Rajappa

कुडनकुलन का संघर्ष अब एक क्लासिक का दर्जा प्राप्त कर चुका है। इससे जुड़ी बहसे भी पूरे देश में गूंज रही है। शायद यह पहला ऐसा जनान्दोलन है जिसमें एक साथ हजारों लोगो पर देशद्रोह का मुकदमा ठोका गया है। … Continue reading

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अरब का सारा इत्र भी………..मार्कन्डेय काटजू

मार्कन्डेय काटजू का यही लेख भाजपा और विशेषकर अरुण जेटली की तिलमिलाहट का कारण है। हालांकि यह लेख बेहद एकतरफा है। और वस्तुगत तौर पर काग्रेस के पक्ष में जाता है। मोदी के बहाने जिस फासीवाद के खतरे की ओर … Continue reading

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वह हम सबकी हिरोइन है……..

सूर्यनेल्ली में एक 16 साल की लड़की के साथ एक नेता समेत 42 लोगों ने 40 दिन तक बलात्कार किया। वह सूर्यनेल्ली की एक सामान्य लड़की है जो 17 सालों से अपने खिलाफ हुए अत्याचार के खिलाफ मजबूती से लड़ … Continue reading

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‘हारुद’

कल रात आमिर बशीर की फिल्म ‘हारुद’ देखी। रात भर बेचैन रही। फ्रेम दर फ्रेम यह फिल्म जो टेन्शन क्रियेट करती है। उसे आसानी से झटकना संभव नही। वर्तमान परिदृश्य में जब ‘सामूहिक चेतना’ को संतुष्ट करने के लिए एक … Continue reading

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एक पाठक — मक्सिम गोर्की

आज से करीब 20 साल पहले एक कहानी पढ़ी थी- मैक्सिम गोर्की की ‘एक पाठक’। कहानी जैसे दिमाग में धंस गयी। उसके बाद जब भी साहित्य के उद्देश्य पर कोई चर्चा होती तो यह कहानी जरुर याद आती। लेकिन उसके … Continue reading

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हम देखेंगे —— फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज फैज अहमद फैज का जन्म दिन है। इस अवसर पर आइये पड़ते है उनकी एक बेहतरीन नज्म– हम देखेंगे लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन कि जिसका वादा है जो लोह-ए-अज़ल में लिखा है जब ज़ुल्म-ओ-सितम के … Continue reading

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लोकतंत्र के लिए एक मुकम्मल दिन: अरुंधति राय

लोकतंत्र के लिए एक मुकम्मल दिन नहीं था क्या? मेरा मतलब, कल का दिन. दिल्ली में बसंत ने दस्तक दी. सूरज निकला था और कानून ने अपना काम किया. नाश्ते से ठीक पहले, 2001 में संसद पर हमले के मुख्य … Continue reading

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‘And His Life Should Become Extinct’ — Arundhati Roy

[अक्टूबर 2006 में अरुन्धति राॅय ने अफजल गुरू को सुनाई गयी फांसी की सजा के खिलाफ एक बेहद विलक्षण लेख लिखा था। लेख का शीर्षक था-‘‘और उसकी जीवन ज्योति बुझ जानी चाहिए’’। आज सुबह आठ बजे अफजल गुरु को फांसी … Continue reading

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ईश्वर की अवधारणा के खिलाफ एक नया वैज्ञानिक तर्क…………….

ईश्वर की अवधारणा पर बहस बहुत पुरानी है। मध्यकाल तक, जब तक विज्ञान पूरी तरह धर्म के चंगुल में था, ईश्वर हर जगह था – यानी कण कण में। आधुनिक काल में जब विज्ञान धर्म के चंगुल से थोड़ा आजाद … Continue reading

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