2008 से लगातार गहराती जा रही विश्व आर्थिक मंदी ने दुनिया के सभी देशों के शासक वर्गो की नींद उड़ा दी है। इस मंदी से निपटने के जो भी उपाय अपनाये जा रहे हैं वे मंदी को और तेज कर दे रहे है। ऐसे समय में मशहूर फिल्म निर्देशक और डाक्यूमेन्टरी मेकर केन लोच एक महत्वपूर्ण फिल्म लेकर आये हैं। यह डाक्यूमेन्टरी जुलाई 2013 में रिलीज हुई। दि स्प्रिट आॅफ 45 नामक यह फिल्म ब्रिटेन के उस दौर को सामने रखती है जब द्वितीय विश्व यु+द्ध के तुरन्त बाद लेबर पार्टी की सरकार बनती है और एटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनते हंै। फिल्म के पुराने विजुअल के माध्यम से केन लोच यह बताने का प्रयास करते हैं कि उस वक्त देश में एक तरह की एकता का माहौल था और सभी लोग नये सिरे से देश के पुनर्निमाण के बारे में प्रयासरत थे। दो विश्व युद्धों के बीच की भयानक मंदी के दौरान पूरी दुनिया के साथ साथ ब्रिटेन ने भी तबाही झेली थी। इस तबाही यानी भूख,बेरोजगारी,औधोगिक दुर्घटना आदि की बहुत ही विश्वसनीय झलक इस फिल्म में मिलती है।
फिल्म इसके बाद यह दिखाती है कि कैसे पूरे देश ने एकजुट होकर अर्थव्यवस्था के राष्ट्रीयकरण और लोक कल्याणकारी राज्य का रास्ता अपनाया। देश में एक एक करके रेल, खनन, यातायात, स्वास्थ्य आदि आदि का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इससे जनता को कितना फायदा हुआ, इसे कई साक्षात्कारो के माध्यम से बताया गया है। इसके अलावा लोगो को सस्ते घर भी दिये गये और आवास की समस्या को एक हद तक हल किया गया।
फिल्म आगे बढ़ती है और नवउदारवाद का दौर आता है। ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर की सरकार आती है और इस प्रकिया को उलट दिया जाता है। यानी कीन्स का स्थान अब मिल्टन फ्रीडमैन ले लेते हैं।
सभी सेक्टरों का निजीकरण शुरु हो जाता है। इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे मजदूर यूनियनों को बर्बरता पूर्वक कुचल दिया जाता है। इस संदर्भ में खनन मजदूरों का प्रतिरोध और उनका दमन ऐतिहासिक है। केच लोच ने इस विषय पर एक अलग बेहतरीन डाक्यूमेन्टरी which side are you on बनायी है। इसी नाम से पीट सीगर के गाये गाने का भी इस डाक्यूमेन्टरी में इस्तेमाल किया गया है।
फिल्म में कोई नरेशन नही है। लेकिन विभिन्न साक्षात्कारों के माध्यम से केन लोच यह अपील करते है कि आज फिर 45 के स्प्रिट को ताजा करने की जरुरत है। और लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की ओर लौटने की जरुरत है। उनकी यह अपील समाज के किस वर्ग से है,यह स्पष्ट नही है।
बेहद कलात्मक तरीके से बनायी गयी इस फिल्म का लब्बोलुआब यह है कि आज की विश्वव्यापी मंदी का विकल्प लोक कल्याणकारी राज्य है जिसे केन लोच जानबूझ कर या बिना जाने समाजवाद के पर्यायवाची के तौर पर इस्तेमाल करते है।
केन लोच को यह बात क्यो नही समझ आती कि लोक कल्याणकारी राज्य समाजवाद नही है वरन पूंजीवाद की ही एक भिन्न व्यवस्था या उसकी एक भिन्न रणनीति है। यह रणनीति अपनाने पर उसे इसलिए बाध्य होना पड़ा क्योकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के एक बड़े हिस्से में असली समाजवाद लागू हो चुका था और पूरी दुनिया उसकी तरफ आशा भरी निगाहों से देख रही थी। यह दौर राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलनों का भी था। ऐसे में पूंजीवाद को अपने अपने देशों की जनता को यह कन्शेसन देना ही था। ना देना उसके लिए घातक साबित होता। द्वितीय विश्व युद्ध के विध्वंस ने पूंजी निवेश की पर्याप्त संभावना भी पैदा कर दी थी। जिस कारण उस दौर के पूंजीवाद के लिए यह रणनीति बनाना संभव हो पाया। केन लोच को यह समझना चाहिए कि यह तथाकथित ‘स्प्रिट’ उस वक्त सिर्फ ब्रिटेन की बात नही थी। बल्कि पूरे पूंजीवादी जगत में यही नीतियां लागू की जा रही थी। अपने देश में नेहरु माडल भी इसी की भद्दी नकल थी।
आज स्थितियां पूरी तरह बदली चुकीं है। इसलिए पूंजीवाद के एक रुप की जगह उसके पुराने रुप की चाह रखना न सिर्फ बेमानी है वरन इतिहास के पहिए को पीछे की ओर घुमाना है। विज्ञान की तरह सामाजिक विज्ञान की प्रक्रियायें भी irreversible होती है।
इस रुप में देखे तो केन लोच की यह फिल्म ’45’ की स्प्रिट बताने के बहाने 45 का एक मनमाना मिथक गढ़ती है जो वास्तविकता से न सिर्फ कोसों दूर है वरन एक अर्थ में खतरनाक भी है।