‘छोटा भीम’ का सन्देश – शिवकुमार राधाकृष्णन

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‘छोटा भीम’ टेलीविजन सीरियल बच्चों के बीच और बड़ों के बीच भी बहुत लोकप्रिय है। कई भाषाओं में यह रोज प्रसारित किया जाता है। इसके दर्शक लाखों में हैं और यह कई वर्षो से लगातार दिखाया जा रहा है। इसकी लोकप्रियता इसी से समझी जा सकती है कि बच्चों के दूसरे कार्यक्रम और एडवरटीजमेन्ट्स कैसे इससे जुड़े होते हैं।
इसे पसन्द करने का कारण मुख्यतः इसका कथानक है जो लगभग प्रत्येक एपीसोड में एक सा ही रहता है। कथानक काफी सरल है। एक राजा अपनी छोटी बेटी राजकुमारी के साथ ढोलकपुर राज्य पर राज्य करता है। और एक खूबसूरत पहाड़ी पर बने महल में रहता हैं। यहां के निवासी कमोवेश अच्छे चरित्र वाले हैं। गांव में बच्चों का एक समूह अक्सर खेलता रहता है जिसमें सबसे स्मार्ट और खूबसूरत है-‘छोटा भीम’। कुछ और बच्चे व बोलने वाला एक बन्दर उसकी मदद करते हैं। अचानक ढोलकपुर की शान्ति को कुछ बुरे लोग अपनी बुरी नियत से भंग करने का प्रयास करते हैं। राजा उनसे पार पाने में असहाय नजर आता है। इसी निर्णायक मौके पर छोटे भीम का प्रवेश होता है और वह अपनी ताकत से ढोलकपुर से उन बुरे लोगों को निकाल बाहर करता है। इस तरह छोटा भीम सही वक्त पर राजा और राज्य को बचा लेता है। नागरिक छोटे भीम की सराहना करते हैं और फिर से खुशी पूर्वक रहने लगते हैं। इस सरल, बुराई को हराने वाली कहानी में गलत क्या हो सकता है।
इसमें एक खास चीज गौर करने लायक है कि सभी ‘छोटा भीम’ सीरीयल में मध्यकालीन ग्रामीण पृष्ठभूमि में आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों को लगातार जोड़ा गया है। इसमें समस्या यह है कि विश्व ने वैज्ञानिक उपलब्धियों को कई चरणों में हासिल किया है और हर चरण में पुराने मध्ययुगीन मूल्यों को नकार कर नये तार्किक चिन्तन को हासिल किया गया है। लेकिन यहां एक मध्ययुगीन राज्य में आधुनिक उपकरणों (जैसे राकेट में बैठकर मंगल ग्रह की यात्रा) का इस्तेमाल होता है और ऐसा प्रभाव पड़ता है कि बिना पुराने तरीके का जीवन छोड़े (जैसे सामन्ती राज्य आदि) भी वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल की जा सकती है। यह समय के सतत विकास के साथ वैज्ञानिक उपलब्धियों को चरणों में ना दिखाकर एक तरह का कालभ्रम [anachronism] पैदा करता है। और हास्यास्पद तरीके से ‘सुपर ताकत देने वाले लड्डू’ के साथ ही अन्तरिक्ष में जाने वाले राकेटों को दिखाता है।
इसके अलावा यह जिस तरह रुढि़वादी तस्वीर और पूर्वाग्रह पैदा करता है वह बहुत ही खराब है। भीम का एक साथी ‘कालिया’ है। कालिया को मोटा और मूर्ख दिखाया गया है जो हमेशा मात खाता हैै। इसका रंग और लोगो की अपेक्षा काला है। समस्या सिर्फ यह नही है कि इसके चमड़ी के रंग के आधार पर इसका नाम कालिया रख दिया गया हैै बल्कि जब इस चरित्र को कायर दिखाया जाता है, इसका लगातार मजाक उड़ाया जाता है तो यह अप्रत्यक्ष रुप से इसके रंग की विशेषता हो जाता है।
इसी तरह से ढोलकपुर की शान्ति को भंग करने वाले सभी बुरे लोग विदेशी के रुप में ही दिखाये जाते है। जादूगर, शोमैन और दूसरे धूर्त लोग जो राज्य को जीतना चाहते है या उसे भ्रष्ट करना चाहते है, हमेशा बाहर से ही आते दिखाये जाते हैं। उनके कपडे़, उनका बोलने का ढंग, उनकी प्रतिभा को हमेशा एक खास अजनबी तरीके से दिखाया जाता है। हर बार जब एक विदेशी ढोलकपुर के नागरिकों का मनोरंजन करने या उनकी मदद करने के बहाने से ढोलकपुर आता है तो हमेशा उनका एक गुप्त मकसद होता है। ऐसा देश जिसके बारे माना जाता है कि वह दूसरे देशों के साथ विनिमय करके प्रगति करता है, वहां ‘विदेशी’ लोगों को बुरे लोगों के रुप में दिखाना निश्चित रुप से एक पिछड़ापन है और एक रुढि़वादी तस्वीर का उदाहरण है। विदेशियों को इस रुप में दिखाने से, प्रोग्राम देखने वाले छोटे बच्चों के मन में विदेशियों के प्रति घृणा [xenophobia] पैदा होगी।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जब अल्पसंख्यकों को प्रायः ‘विदेशियों’ के रुप में दिखाया जाता है, जिन्हें अपनी राष्ट्रीयता व देशीयता बार बार साबित करनी पड़ती है तो इस तरह की ‘विदेशी घृणा’ का चित्रण खतरनाक है।
वर्तमान पीढ़ी को वैज्ञानिक कालभ्रम [anachronism], नस्लवाद [racism] और विदेश घृणा [xenophobia] की शिक्षा देने की बजाय सहयोग पर आधारित वैश्विक दोस्ती और प्रगति का सन्देश देने वाली शिक्षा की जरुरत है। छोटा भीम जो सन्देश दे रहा है उस पर उसे सोचने की जरुरत है।
अनुवाद – कृति
साभार kafila.org से

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