‘बिकनी’ और ‘बिकनी एटोल’ के 70 साल….

louis reard and 2 peacebikini atole

ब्रिटेन की लोकप्रिय पत्रिका ‘मिरर’ में 4 जुलाई 2016 को फैशन परिधान ‘बिकनी’ के 70 साल पूरे होने पर एक लम्बा लेख छपा। इसमें यह जानकारी भी दी गयी थी कि बिकनी का नाम ‘बिकनी’ क्यो पड़ा। पता चला कि बिकनी के ‘आविष्कारक’ फ्रान्स के मशहूर फैशन डिजायनर ‘लुइस रीयर्ड’ [Louis Reard] ने इसका नाम प्रशान्त महासागर में स्थित एक द्वीप ‘बिकनी एटोल’[Bikini Atoll] के नाम पर रखा। जब मैंने सर्च इंजन में ‘बिकनी एटोल’ डाला तो मुझे इसके बारे में भयावह जानकारियां मिली। आज से ठीक 70 साल पहले 1 जुलाई 1946 को अमरीका ने इस द्वीप पर ‘हिरोशिमा-नागासाकी’ पर गिराये गये [6 august और 9 august 1945] परमाणु बम से भी कई गुना शक्तिशाली परमाणु बम का परीक्षण शुरु किया था। 1946 से 1958 तक इस द्वीप पर और आसपास कुल 67 परमाणु बम का परीक्षण किया गया। इसमें से कई की ताकत हिरोशिमा-नागासाकी पर गिराये गये बम से 1000 गुना ज्यादा थी। 1954 में इसी द्वीप पर पहली बार हाईड्रोजन बम का भी ‘सफल’ परीक्षण किया गया।
बिकनी एटोल पर एक पूरी सभ्यता निवास करती थी। 17वीं शताब्दी में स्पेन की इस पर नज़र पड़ी और उसने इस पर कब्जा जमा लिया। उसके बाद जर्मनी से होते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में यह जापान के कब्जे में रहा। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के हार जाने के बाद यह अमरीका के कब्जे में आ गया।
परीक्षण शुरु करने से पहले अमरीका ने यहां के आदिवासी समाज के मुखियाओं की एक बैठक बुलाई। उनसे कहा गया कि उन्हे यह द्वीप खाली करना पड़ेगा। यहां ‘मानवता की बेहतरी’ के लिए कुछ परीक्षण किये जायेगे। इसके बाद उन्हे जबर्दस्ती जहाजों पर लाद कर यहां से 200 किलोमीटर की दूरी पर एक दूसरे निर्जन द्वीप ‘रोन्गेरिक एटोल’ पर भेज दिया गया। उन्हें महज कुछ सप्ताह का राशन मुहैया कराया गया। यह द्वीप रहने लायक नहीं था। इसलिए राशन खत्म होने के बाद वे भूखमरी के शिकार होने लगे। विश्व मीडिया में अमरीका की आलोचना होने के बाद उन्हें पुनः कुछ हफ्तों के राशन के साथ पास के दूसरे निर्जन द्वीप पर भेजा गया। तब से लेकर आज तक वे आसपास के द्वीपों पर भटक रहे है। उनमें से अधिकांश परमाणु विकिरण के घातक असर से भी जूझ रहे है। उनका अपना देश ‘बिकनी एटोल’ पूरी तरह तबाह हो गया। यहां विकिरण स्तर समान्य से कई गुना ज्यादा है।
‘बिकनीएटोलडाटकाम’[www.bikiniatoll.com] ने परमाणु परीक्षण वाले दिन और उसके तुरन्त बाद की स्थितियों को इन शब्दों में कैद किया है-‘‘रोन्गेरिक एटोल पर विस्थापित लोगों को नही पता था कि वहां क्या हो रहा है। उन्होंने उस दिन आसमान में दो सूरज देखे। उन्होंने आश्चर्य से देखा की उनके द्वीप के ऊपर दो इंच मोटा रेडियोएक्टिव धूल के बादल छा गये। उनका पीने का पानी खारा हो गया और उसका रंग बदलकर पीला पड़ गया। बच्चे रेडियोऐक्टिव राख के बीच खेल रहे थे, मांए भय से यह सब देख रही थी। रात होते होते उनके शरीर पर इसका असर साफ दिखने लगा। लोगों को उल्टियां और दस्त पड़ने लगे, बाल झड़ने लगे। पूरे द्वीप पर आतंक की लहर दौड़ पड़ी। इन लोगों को कुछ नही बताया गया था और ना ही अमरीका द्वारा किसी तरह की चेतावनी ही जारी की गयी थी। परीक्षण के दो दिन बाद उन्हे ‘इलाज’ के लिए पास के ‘क्वाजालेन द्वीप’ पर ले जाया गया।’’
बिकनी एटोल पर इस परीक्षण के लिए आसपास कुल 42 हजार अमरीकी सैनिक तैनात थे। इसके अलावा परीक्षण का असर जानने के लिए 5400 चूहे, बकरी और सूअरों को भी इस द्वीप पर लाया गया।

protest march of Bikini Atoll's people

protest march of Bikini Atoll’s people


1980 के आसपास ‘सीआइए’ की एक स्रीक्रेट रिपोर्ट ‘डिक्लासीफाइड’ हुई। बिकनी एटोल के निवासी और बिकनी एटोल की घटना पर नज़र रखने वाले लोग इस रिपोर्ट से बुरी तरह सकते में आ गये। इसमें साफ साफ बताया गया था कि चूहों, बकरियों और सूअरों के साथ ही बिकनी एटोल के निवासी भी परमाणु परीक्षण के औजार थे। इसलिए उन्हें जानबूझकर बिकनी एटोल से इतनी दूरी पर विस्थापित किया गया था कि वे परमाणु विस्फोट से मरे भी ना और पूरी तरह से परमाणु विकिरण की जद में रहें ताकि उन पर इसके प्रभावो का अध्ययन किया जा सके। इस रिपोर्ट के बाद ही बिकनी एटोल के लोगो और इस पर नज़र रखने वाले लोगों को यह समझ में आया कि क्यों अमरीका के डाक्टर नियमित अन्तराल पर उनके बीच आते थे और उनका ‘मुफ्त’ ‘इलाज’ करते थे। यही नही उन 42000 अमरीकी सैनिकों में से भी कई इस विकिरण की जद में आ गये। और उनमें कई कैन्सर जैसी घातक बीमारियों के शिकार हो गये। इस विकिरण से प्रभावित सैनिकों ने बाद में अपना संगठन बना कर अमरीकी सरकार पर केस भी दायर किया है। हालांकि यह पता नहीं चल सका है कि क्या ये सैनिक भी इस प्रोजेक्ट में ‘गिनी पिग’ की तरह इस्तेमाल किये गये या यह अमरीकी साम्राज्यवाद का ‘कोलैटरल डैमेज’ था। इसी से जुड़ा यह तथ्य कम लोगों को ही पता होगा कि ‘हिरोशिमा-नागासाकी’ पर गिराये गये बम में लाखों जापानियों के साथ ही वहां की जेलों में बन्द 100 के करीब अमरीकी युद्ध बन्दी भी मारे गये थे। और अमरीका को यह तथ्य अच्छी तरह पता था कि वहां की जेलों में अमरीकी भी कैद हैं।

इस विवरण को पढ़कर मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि कैसे इस त्रासद कहानी से ‘टू पीस बिकनी’ को जोड़ा गया। बाद में मुझे पता चला कि ‘सेक्स बम’ जैसे शब्द भी हमारे शब्दकोश में इस समय जुड़े।
बिकनी एटोल के निवासियों के साथ हुई इस त्रासद अमानवीय घटना के रुपक को यदि फैशन पर लागू करे तो हम देखेंगे कि इसी समय से विशेषकर अमेरिका और यूरोप में महिलाओं पर फैशन का ‘आक्रमण’ होना शुरु हुआ। प्रयास किया जाने लगा कि उनकी मानवीय रुह को विस्थापित करके उन्हे महज ’फैशन डाॅल’ में बदल दिया जाय। सोवियत संघ और चीन में समाजवाद और तीसरी दुनिया में राष्ट्रीय मुक्ति युद्धों के कारण जो चेतना पैदा हो रही थी, उसका मुकाबला करने के लिए उनके लिए यह जरुरी था कि सामूहिकता के बरक्स व्यक्ति को स्थापित किया जाय। यानी व्यक्तिवाद को बढ़ाया दिया जाय। इस सन्दर्भ में फैशन उस परमाणु बम की तरह था जिससे महिलाओं में आ रही ‘मुक्ति की चेतना’ को तबाह किया जा सकता था और उन्हें सामूहिकता के द्वीप से विस्थापित करके अलग अलग निर्जन द्वीपों पर विस्थापित किया जा सकता था। 2005 में आयी ‘एडम कुरटिस’ की मशहूर डाक्यूमेन्ट्री ‘सेन्चुरी आॅफ दि सेल्फ’ में इस परिघटना को बेहद बारीकी से दिखाया गया है।
अमरीकन और यूरोपियन फैशन के इसी विध्वंसक और अमानवीय स्वरुप के कारण ‘टू पीस परिधान’ का नाम बिकनी पड़ा। इसमें कोई शक नही।
साम्राज्यवाद-पूंजीवाद में हर चमकती जगमगाती आकर्षक चीज के पीछे त्रासदी, दुःख और खून पसीना होता है। जब भी आप फैशन का कोई आकर्षक परिधान देंखे तो बांग्लादेश का ‘रानाप्लाजा’ जरुर याद कर लें। और जब भी आप कोई आकर्षक इलेक्ट्रानिक सामान देंखे तो कांगो के उन बच्चों को याद कर लीजिए जो इन इलेक्ट्रानिक सामानों में प्रयुक्त होने वाले धातुओं को निकालने के लिए लंबी अंधेरी सुरंग नुमा खानों में प्रवेश करते हैं और कई तो वही दम तोड़ देते हैं।
‘कार्ल मार्क्स’ ने इन सब का निचोड़ पेश करते हुए लिखा है- ‘पूँजी सर से पांव तक खून और गंदगी में सनी हुई है।’
हमसे से कितने लोग इसे देख पाते हैं।
बहरहाल बिकनी एटोल की इस त्रासदी पर एक डाक्यूमेन्ट्री ‘रेडियो बिकनी’ आप यहां देख सकते हैं।

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