Author Archives: kriti shree

साम्राज्यवाद की गिरफ्त में ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ [AI]

पूंजीवाद अपनी शुरुआत से ही अपने लिए एक ऐसे क्षेत्र की तलाश करता रहा है, जहाँ उस पर कोई नियम-कानून लागू न हो. जहाँ वह अपनी मूल प्रकृति के साथ काम कर सके और निर्बाध मुनाफा कमा सके. उपनिवेशवाद के … Continue reading

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महिला, समाजवाद और सेक्स – मनीष आज़ाद

आज से ठीक 30 साल पहले 1990 में जब पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ तो समाजवादी व्यवस्था के तहत लंबे समय तक रहे पूर्वी जर्मनी को और प्रकारान्तर से समाजवादी रहे देशों को नीचा दिखाने के लिए … Continue reading

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मनुष्य बनाम तकनीक

आपके कान जुड़े हुए है हेडफोन से हेडफोन जुड़ा है आइफ़ोन से आईफोन जुड़ा है इंटरनेट से इंटरनेट जुड़ा है गूगल से और गूगल जुड़ा है सरकार से -अज्ञात ‘फ्रांसिस फुकोयामा’ के इतिहास के अन्त की घोषणा के ठीक 16 … Continue reading

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त्रिलोचन शास्त्री और उनका दलित दोस्त

आज 20 अगस्त को हिंदी के बड़े व प्रगतिशील कवि ‘त्रिलोचन शास्त्री’ का जन्म दिन है। आज ही के दिन 1917 में वे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में पैदा हुए थे। उनसे जुड़ा एक किस्सा आज मुझे याद आ … Continue reading

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‘Innocence Project’ and ‘The Innocence Files’

2014 में ‘शुभ्रदीप चक्रवर्ती’ की एक महत्वपूर्ण दस्तावेजी फिल्म आयी थी-‘आफ्टर दि स्टार्म’। इस फिल्म में शुभ्रदीप ने 7 ऐसे मुस्लिमों की कहानी बयां की है जिन्हें आतंकवाद के झूठे केसो में फंसाया गया और फिर सालों साल जेल में … Continue reading

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‘खीम सिंह बोरा’- एक राजनीतिक बंदी

आज जब हम वरवर राव व अन्य राजनीतिक बन्दियों के लिए अपनी आवाज उठा रहे हैं तो हमें यह नही भूलना चाहिए कि देश की तमाम जेलों में हज़ारो ऐसे कैदी बंद हैं जो अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण जेलो … Continue reading

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अंत की शुरुआत……….

दार्शनिक दृष्टी से देखेँ तो ‘अंत’ कुछ नही होता। हर ‘अंत’ के साथ एक अनिवार्य ‘शुरूआत’ जुड़ी होती है। इस बात का अहसास मुझे तब हुआ जब मैंने ‘अब्बू की नज़र में जेल’ का अन्तिम भाग असली ‘अब्बू’ को भेजा … Continue reading

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अब्बू की नज़र में जेल- अंतिम भाग

एक दिन सुबह-सुबह गिनती के बाद अब्बू ने अचानक बिना किसी सन्दर्भ के मुझसे पूछा-‘मौसा, अगर तुम्हारे पास अपनी जेल होती तो क्या तुम मौसी को कभी जेल में डालते।’ मैंने बेहद आश्चर्य से उससे पूछा कि ये क्या पूछ … Continue reading

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अब्बू की नज़र में जेल-12

यह मध्य जनवरी की ठंडी सुबह थी। सभी लोग ‘खुली गिनती’ के बाद तुरन्त अपने अपने बैरक में लौटने की जल्दी में थे। हम अहाते के बीच पहुंचे ही थे कि अब्बू ने मेरा हाथ झटकते हुए सामने की ओर … Continue reading

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अब्बू की नज़र में जेल-11

गिरफ्तारी के तुरन्त पहले की कहानी- दिन भर की धमा-चौकड़ी के बाद अब रात में अब्बू को तेज नींद आ रही थी। लेकिन आंखो में नींद भरी होने के बावजूद वह अपना अन्तिम काम नहीं भूला-मुझसे कहानी सुनने का काम। … Continue reading

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