‘कभी कभी एक त्रासदी या एक अपराध यह बताने के लिए पर्याप्त होते हैं कि लोकतंत्र के नकाब के पीछे पूरा सिस्टम काम कैसे करता है और यह समझने में मदद मिलती है कि शक्तिशाली लोग पूरी दुनिया को कैसे अपने हित में हांक रहे हैं, तथा यह भी समझ में आता है कि सरकारें झूठ कैसे बोलती हैं। ईराक तथा इसी तरह के दूसरे अन्य देशों की विपदा को समझने और साम्राज्यवाद के खून और आंसुओं से लिखे इतिहास को समझने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरुरत नही है, इसे दियागो गार्सिया के इतिहास से समझा जा सकता है।’
[‘Stealing a Nation’ नामक डाक्यूमेन्टरी से ]
‘जान पिलजर'[John Pilger] की यह मशहूर डाक्यूमेन्टरी ‘Stealing a Nation’ बताती है कि कैसे ब्रिटेन और अमरीका ने मिलकर दियागो गार्सिया नामक द्वीप से उसकी पूरी की पूरी जनसंख्या को निकाल बाहर किया और इस द्वीप पर अमरीका ने अपना दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा बना लिया। इसी सैन्य अड्डे से ईराक और अफगानिस्तान पर बम बरसाये जाते रहे हैं।
‘दियागो गार्सिया’ हिन्द महासागर में एशिया और अफ्रीका के ठीक बीचों बीच स्थित है। 1814 में ब्रिटेन ने इसे फ्रांस से जीता था। तब से ही यह ब्रिटेन की कालोनी बना रहा। 1960 में अमरीका के साथ एक गुप्त समझौते के तहत इसे लीज पर अमरीका को दे दिया गया। 1960 से 1973 तक यहां के करीब 2000 बाशिन्दों को तरह तरह से धमकाया जाता रहा कि वे खुद ही यहां से चले जाये। यहां के लोग जिन्हे ‘चागोस’ कहा जाता है, वे पिछले 6-7 पीढि़यों से यही रहते आये है। यहां उनकी पूरी बस्तियां, मार्केट, अस्पताल आदि थे। यही उनका देश था। वे कहां जाते। उन्हे धमकाने के लिए पहले उनके पालतू कुत्तों को मार डाला गया। यहां की अर्थव्यवस्था में कुत्तों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे समुद्र में डुबकी लगाकर अपने मालिकों के लिए मछलियां पकड़ते थे।
अंततः जब उन्होने द्वीप छोड़ने से इंकार कर दिया तो दियागो गार्सिया के समस्त बाशिन्दों को 1973 में जबर्दस्ती एक जहाज पर लाद कर वहां से 1000 मील दूर मारीशस में धकेल दिया गया। उन्हें अपने साथ कोई सामान भी नही ले जाने दिया गया।
इस तरह अमरीेका ने एक पूरी कौम को ही उसके देश से बेदखल कर दिया। आज इस द्वीप पर 4000 अमरीकी सैनिक और परमाणु बमोें से लैस कई बमवर्षक जहाज हैं। उधर मारीशस में दियागो गार्सिया के बाशिन्दे अभी भी नरक की जिन्दगी जी रहे हैं। कई लोग अपने गम से परेशान होकर आत्महत्या कर रहे है। लेकिन उन्होंने अपनी लड़ाई नही छोड़ी है। आज भी उन्हेे उम्मीद है कि एक दिन वे अपने देश जरुर लौटेंगे। कई कानूनी लड़ाइयों के बाद अन्ततः ब्रिटेन के हाईकोर्ट ने 2000 में अपना एतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि दियागो गार्सिया के लोगो की बेदखली गैरकानूनी है और उन्हे अपने देश लौटने का हक है और उन्हे अपने देश वापस भेजा जाय। इस पर ब्रिटेन ने अजीब तर्क देते हुए कहा कि हम दियागो गासिर्या के लोगो का ख्याल रखते हुए उन्हे वापस वहां नही भेज सकते क्योकि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के चलते कभी भी दियागो गासिर्या द्वीप डूब सकता है और उनकी जान जा सकती है। जबकि पूरी दुनिया को पता है कि वहा 4000 अमरीकी सैनिक अपनी पूरी दुनिया बना कर रह रहे है।
चागोस वासी अपने देश दियागो गार्सिया लौट पायेंगे या नही यह इस पर निर्भर करता है कि साम्राज्यवाद खत्म होगा या नहीं।
बहरहाल यह महत्वपूर्ण व साहसी डाक्यूमेन्टरी आप यहां देख सकते हैं।