Category Archives: General

Kya Dilli Kya Lahore

मई 2014 में आयी फिल्म ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ दर्शकों का ध्यान नहीं खींच पाई। आज के इस दौर में जब ‘मनोरंजन’ ने ‘यथार्थ’ पर पूरी तरह विजय पा ली है तो ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ जैसी यथार्थ परक फिल्मों … Continue reading

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I am a troll: Inside the secret world of BJP’s digital army

जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री ‘मोदी’ ने अपने आधिकारिक आवास ‘रेसकोर्स रोड’ पर 150 सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले अपने समर्थकों की मीटिंग की। इस मीटिंग में सोशल मीडिया (विशेषकर ट्विटर पर) पर सक्रिय रहने वाले वे ‘ट्रोल’ (troll-जिसका हिन्दी … Continue reading

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जहां प्रतिरोध जीने का सलीक़ा है….

कई दिनो से एक किताब मेरे सिरहाने खामोश (?) पड़ी थी… पढ़े जाने का इन्तज़ार करते हुए… न जाने क्यों मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी उस किताब को पढ़ने की….पता नहीं क्यों मुझे लगता कि मेरे कलेजे की तरह … Continue reading

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The richest 1% of Indians now own 58.4% of wealth

The richest 1% of Indians now own 58.4% of the country’s wealth, according to the latest data on global wealth from Credit Suisse Group AG, the financial services company based in Zurich. Credit Suisse has published the report every year … Continue reading

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Decision to Demonetise Currency Shows They Don’t Understand Capitalism: Prabhat Patnaik

You have written recently about the misconceptions around the idea of black money. What really is black money? There is a feeling that black money is basically a stock of money, which is put in pillow cases or trunks or … Continue reading

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‘Son of Saul’ : a unique film on Holocaust

9 अक्टूबर को जब पोलैण्ड के मशहूर फिल्मकार और ‘आस्कर’ के ‘लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड’ से सम्मानित ‘आन्द्रेइ वायदा’[Andrzej Wajda] की मृत्यु हुई तो ‘मंगलेश डबराल’ ने उन पर एक अच्छा आलेख लिखा। इसका शीर्षक था- ‘महान सिनेमा का आखिरी … Continue reading

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‘The Many Faces of Kashmiri Nationalism: From the Cold War to the Present Day’

कश्मीर के वर्तमान हालात में ‘नन्दिता हक्सर’ की पिछले साल आई किताब ‘मेनी फेसेज आॅफ कश्मीरी नेशनलिज्म: फ्राम दि कोल्ड वार टू दि प्रजेन्ट डे’ से गुजरना एक बेचैन कर देना वाला अनुभव रहा। नन्दिता हक्सर ‘उत्तर पूर्व’ और कश्मीर … Continue reading

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‘बिकनी’ और ‘बिकनी एटोल’ के 70 साल….

ब्रिटेन की लोकप्रिय पत्रिका ‘मिरर’ में 4 जुलाई 2016 को फैशन परिधान ‘बिकनी’ के 70 साल पूरे होने पर एक लम्बा लेख छपा। इसमें यह जानकारी भी दी गयी थी कि बिकनी का नाम ‘बिकनी’ क्यो पड़ा। पता चला कि … Continue reading

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‘Cultural Revolution’: Revolution within Revolution

16 मई 1966 को शुरु हुई चीन की ‘महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति’ को 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं। लेकिन अभी भी इतिहास के पन्नों में इसे वह जगह हासिल नही है जिसकी यह हकदार है। सच तो यह है … Continue reading

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‘लातीन अमरीका के रिसते जख्म’: एक चीखती किताब

एदुवार्दो गालिआनो की किताब ’ओपेन वेन्स ऑफ़ लैटिन अमेरिका’ [OPEN VEINS OF LATIN AMERICA] लम्बे समय से पढ़ने की फेहरिस्त में थी। गार्गी प्रकाशन ने हाल ही में इसका हिन्दी अनुवाद ’लातिन अमेरिका के रिसते जख्म’ के नाम से प्रकाशित … Continue reading

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